ज़िन्दगी की कहानी सुनिए कार्टून्स की जुबानी.....


हाल ही मेरी नजर एक कार्टून पर पड़ी,जिसमें मरीज डॉक्टर से कहता है कि मुझे गैस की पुरानी बीमारी है और नीचे लिखा था भोपाल गैस त्रासदी। कार्टून रेखाओ को ऐसा संयोजन है जो देखने वाले के मन को गुदगुदा देता है। साथ ही समाज की विसंगतियों पर कटाक्ष भी करता है। अखबारों और पत्रिकाओं का विशेष आकर्षण उसमें छिपे है। हमारे जीवन में इनका विशिष्ट महत्त्व इसलिए है क्योकि ये हमारे ज़िन्दगी से कहीं न कहीं जुड़े होते है। कार्टून हमारे जीवन से रिश्ता ही नहीं जोड़ते बल्कि कुछ सन्देश भी देते है। जो हम सब को सोचने पर मजबूर कर देते है। कार्टून के जरिये किया गया कटाक्ष और दिया गया सन्देश अक्सर हम पर गहरा असर छोड़ता है। सूझबूझ से बनाया गया एक छोटा सा कार्टून पूरे पेज के लेख से कहीं अधिक प्रभावकारी होता है। हंसी व्यंग से भरपूर कार्टून अखबार में छपी विश्लेषणपूर्ण ख़बरों की तुलना में आसानी से हम सब की समझ में आ जाते है। कार्टूनों के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आम आदमी उसमें समाज और व्यवस्था के प्रति आक्रोश की अभिव्यक्ति का संतोष प्राप्त करता है। उसके मन में समाज की विद्नबनाओं ,प्रवचनों और विरोध भाषाओ पर प्रहार करने की चाह है,जो वो कार्टूनों में साकार हुआ पाता है।


{i-next 5 जुलाई 2010 में प्रकाशित }

ब्लॉग बोले तो...आपकी हमारी पर्सनल डायरी


सारा दिन क्या किया ! ऋतिक की लेटेस्ट फिल्म कौन है ! बिल गेट्स ने भारत यात्रा के दौरान क्या पाया ! सकीरा का लेटेस्ट एल्बम क्या है ! दादी के पुराने-पुराने नुस्खे की बदौलत जुकाम ठीक करने का प्रयोग सबको बताना या फिर आप सारी दुनिया को बताना चाहते है कि आप की फेवेरिट फ़ुटबाल टीम कौन सी है! और क्यों ! कहने और जानने के लिए आप के पास बहुत कुछ है और आप जैसे सैकड़ों लोग है जिनके पास शेयर करने के लिए ऐसे हजारों बातें है। इन्टरनेट की दुनियां में अपने दिल की बातें बताने का तरीका है ब्लॉग। जो पल भर में दुनियां के कोने-कोने में पढ़ा जायेगा। इन निजी ऑनलाइन दायरे की खाशियत यह है कि विचार निजी रखते हुए भी पूरी तरह से सामाजिक है। आज नारद, अक्षरधाम जैसे नाम हिंदी के ब्लॉग लिखने वाले लोग अपरिचित नहीं है। पंकज पचौरी,अविनाश,किशोर केशवानी,रविश कुमार,समेत ढेरों हिंदी के पत्रकार,पाठक और जिज्ञासु लोग ब्लागस्पाट पर मोहल्ला,कस्बा,खामखा,समकाल,सहित अलग-अलग नामों में उपस्थित है। यह कभी राजनीति पर बहस करते है तो कभी किसी सिने एक्टर पर,यहाँ पर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रा पर भी टिकी बहस होती है। आज ब्लॉग जीवन में व्यक्तिगत डायरी का हिस्सा बन गए है जिसमें हर तरह की बातें शामिल होती है।


{14 जून 2010 i-next में प्रकाशित }

आपने साइकिल ली क्या? आइडिया बुरा नहीं है.


वर्ल्ड इनवायर्नमेंट डे पर मेरे दोस्तों ने बाइक को अलविदा कह कर ११ गियर वाली साइकिल खरीद ली और साइकिल क्लब की स्थापना कर डाली। मुझे भी उस क्लब का मेम्बर बनने को कहा तो मैंने अपने दोस्तों से पूछा कि इसका फ़ायदा क्या है। जिस पर मेरे दोस्तों ने मुझको डेमो दे डाला। दोस्तों ने मुझसे कहा कि पहले जमाने में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए हम साइकिल का इस्तेमाल करते थे। इसके बाद इसकी जगह मोटरसाइकिल,कार,बस और ट्रक ने ले ली है। इसकी वजह से सड़के असुरक्षित हो गयी है और एक्सीडेंट बढ़ते जा रहे है। इन गाड़ियों के धुएं से दिन पर दिन शहर का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। जो हमारी हेल्थ पर गंभीर असर डाल रहा है। आज के लोग थोड़ी से दूर जाने के लिए भी मोटरसाइकिल का इस्तेमाल करते है। उसकी जगह पैदल या फिर साइकिल से जाने को अपनी तौहीन समझते है। क्योकि साइकिल आज के दौर में गरीबों का स्टैण्डर्ड बन गयी है। जबकि साइकिल चलाना हमारे स्वास्थ्य के लिए तो बेहतर है ही साथ ही वह प्रदूषण को भी रोकती है। और इससे एक्सीडेंट की संभावनाए भी कम होती है। दोस्तों की बात सुनकर लगा कि यह सौदा मंहगा नहीं है। तो भैया, वहां से निकलते ही मैंने भी एक साइकिल खरीद ली।


{ i-next 10 जून 2010 में प्रकाशित }

इंटरनेट.......क्या कुछ नहीं दिया तुमने


आज मैंने अपना कम्प्यूटर खोला तो मुझे अपने फ्रेंड का ई-मेल मिला कि उसे नौकरी मिल गयी है और आजकल वह विदेश में सेटल हो गया है.इस तरह आसानी से खुशियाँ बताने और लोगो से संपर्क साधने का मौका इन्टरनेट ही दे सकता है.आज इन्टरनेट के द्वारा हम एक-दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान सकते है.एक खास बात यह है कि इन्टरनेट के जरिये सूचनाओं का विपुल भंडार हमें मिलता है.इससे कभी-कभी जिंदगी बहुत आसान हो जाती है.आज रेलवे टिकट,एयर टिकट,शापिंग ,चैट,सोशल साइट,जाब्स,गेम्स,घूमना-फिरना सहित अथाह जानकारी इन्टरनेट पर पल भर में उपलब्ध हो जाती है.इन्टरनेट पर कुछ ऐसी साइट्स है,जिनकी जबरदस्त चर्चा है.गूगल अर्थ भी ऐसी ही साइट है जो सैटेलाईट से पूरी दुनिया के नक़्शे को दिखा सकती है.छोटे से छोटे शहर की सड़क और घर तक आप देख सकते है.सिटी में बैठे हुए अपने गाँव के रास्तों को देख सकते है.सुरक्षा मामलों को लेकर इस पर काफी विवाद हो चूका है.आज लोगो ने इन्टरनेट पर अश्लील सामग्री डालने का जरिया बना लिया है.खैर जो भी हो यह हमें सोचना है कि हम प्रौद्योगिकी का प्रयोग किस दिशा में कर रहे है.अगर सही दिशा में कर रहे है तो यह यूजफुल है वरना यह काफी खतरनाक हो सकती है।


{i-next 3 जून 2010 में प्रकाशित }

कह चुके हो तो कुछ करिए भी जनाब....


कहना,कहते और कहते ही रहना.ये हमारी,आपकी और समाज की बहुत पुरानी अदा है.क्या कुछ करने का भी मन बनाया है......? हाल ही मेरे एक दोस्त सिंगापुर से लौटे है.वे वहां की तारीफों के पुल बाँध रहे थे.वह बताने लगे की वहां की सड़कों पर गन्दगी का नामोनिशान नहीं मिलता,सभी वहां के रूल्स फ़ॉलो करते है.हम दूसरे देश की व्यवस्था का पालन कर सकते है,अपनी व्यवस्था का नहीं.भारतीय धरती पर कदम रखते ही हम सिगरेट के टुकड़े जहाँ-तहां फेकने लगते है.कागज के पर्चे उछालते है.यदि हम पराये देश में प्रशंसनीय नागरिक हो सकते है तो भारत में क्यों नहीं.जो गन्दगी के लिए जिम्मेदार है,वही लोग प्रशासन को दोष देते है.हम वोट डालते है और अपनी सारी जिम्मेदारी वही उलट आते है.हम सोचते है कि हमारा हर काम सरकार करेगी.हम फर्श पर पड़ा हुआ रद्दी कागज़ उठाकर कूड़ेदान में डालने की जहमत तक नहीं उठाते.रेलवे हमारे लिए साफ सुथरे बाथरूम देती है और हम उन्हें इस्तेमाल करना भी नहीं सीख पाए.हम ड्राइंगरूम में बैठ कर दहेज़ के खिलाफ आवाज उठाते है और अपने घर में इसका उल्टा करते है.कहते है कि व्यवस्था ही खराब है.हर कोई भारतीय व्यवस्था को कोसने को तैयार है,लेकिन कोई इनीशिएटीव लेने को तैयार नहीं है।



{ i-next 17 मई 2010 में प्रकाशित }


नशा बन गयी है सोशल नेटवर्किंग साइट्स



सोशल नेटवर्किंग साइट्स का क्रेज दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है.युवा इनसे घंटो चिपके रहते है.न उन्हें पढाई का ध्यान रहता है न ही वक्त का.मेरे भाई ने हाल ही में एक सोशल नेटवर्किंग साइट ज्वाइन की है.उस साइट के जरिये उन्होंने अपने एक पुराने दोस्त को ढूढ़ लिया है.जिससे उनका कई साल पहले संपर्क टूट चुका था.शुरुवात में तो दोनों ने घंटो चैटिंग की,लेकिन अब भी आलम यह है कि जनाब दिन भर नेट पर ही बैठे किसी न किसी से चैटिंग करते नजर आते है.इसलिए मुझे लगता है कि सोशल साइट्स के लिए यह कहना गलत नहीं होगा कि इसका इस्तेमाल नशा बनता जा रहा है.लोग ट्विटर,फेसबुक,माइस्पेस,इबीबो,और ऑरकुट जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स का जमकर यूज कर रहे है.आज सोशल नेटवर्किंग साइट्स की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है.इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके यूजर्स की संख्या हर साल कई गुना बढ़ रही है.कुछ लोग इसका गलत यूज भी कर रहे है और इसे युध्द का मैदान बना लिया है.कुछ युवाओं ने तो जुमले भी बना लिए है.कुछ भी हो,इसके बढ़ते क्रेज से नुकसान भी हो सकते है.इसके लिए युवाओ को सचेत रहना होगा।
{i-next 17 अप्रैल 2010 में प्रकाशित}

हर पल का साथी हो गया मोबाइल फ़ोन


मंहगा मोबाइल रखना आज हर किसी के लिए स्टेटस सिम्बल बनता जा रहा है.यूथ के लिए तो ये एक एसा साथी है जिसके बिना वो एक पल नहीं रह सकते.आज हर किसी के लिए मंहगा मोबाइल रखना,एक स्टाइल स्टेटमेंट और प्रेस्टीज सिम्बल बन गया है.हाल ही में मेरे एक कलीग ने ब्लैकबेरी का मोबाइल फ़ोन ख़रीदा है.वो जब कभी घर या ऑफिस से बाहर जाते है तो उसी फ़ोन से ई-मेल करते है और नेट सर्फिंग भी.उनकी नजर में किसी के पास मंहगा मोबाइल फ़ोन होना,उसके अच्छे स्टेटस सिम्बल की पहचान है.यूथ तो खासकर इसी विचार धारा से प्रभावित है.यूथ के लिए मोबाइल फोन उसकी लाइफ स्टाइल का सिर्फ हिस्सा ही नहीं है बल्कि एक ऐसा साथी है,जिसके बिना वह एक पल नहीं रह सकते है.आज मोबाइल पर हर चीज अवेलेबल है.क्रिकेट,स्पोर्ट,टी.वी.शोज की इन्फोर्मेशन,फिल्म,रिव्यू,ज्योतिष,चुटकुले,वैलूएडेड या डेटा सर्विस सबकुछ.अब जब एक बटन दबाने पर सबकुछ अवेलेबल है तो भला यूथ इस टेक्नोलोजी को यूज करने में कैसे पीछे रहे.इसमें बहुत सी चीजे ऐसी है जो युवाओ को कैरियर चुनने के लिए सहायता करती है.लेकिन कुछ लोग इसका गलत इस्तेमाल किया करते है.यूथ इस टेक्नोलाजी का जमकर इस्तेमाल करते है.और इसके लिए कोई भी कीमत खर्च करने के लिए तैयार है.मुझे लगता है कि आइडिया का एड जल्द ही रियलिस्टिक हो जायेगा।


{ i-next १४ अप्रैल २०१० में प्रकाशित }

रोमांच,उत्साह और चुनौती का मतलब बाइकिंग



युवाओ के लिए आज बाइक सिर्फ ट्रांसपोर्टेशन का जरिया न रहकर स्टाइल और फैशन स्टेटमेंट बन गया है.मेरे एक दोस्त ने अभी हाल में ही यामाहा की एक स्पीड बाइक खरीदी है.उसने बाइक की पॉवर बढ़ाने के लिए साइलेंसर मोडिफाई करवा लिया है.उसका कहना है कि स्पीड उसका जुनून है.बाइक पर सवार होकर लॉन्ग ड्राइव का मजा ही अलग है.वह उस युवा वर्ग का प्रतिक है जिसके लिए मोटरसाइकिल महज सुविधा न होकर जिन्दादिली से भरपूर एक शौक बन चुका है.इस शौक को जुनून भी कहा जा सकता है.आज शहरों में जैसे,लखनऊ ,भोपाल,जयपुर,कोलकाता,मुंबई,आदि में ऐसे युवकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है,जो बाइक को रोमांच,उत्साह और युवको युवकों जोड़ते है.यह पलक झपकते जीरो से ८० किलोमीटर की स्पीड में हवा को चीरते हुए निकलना चाहते है.डर और घबराहट जैसे शब्द इनकी डिक्शनरी में है ही नहीं.हवा से बातें करने वाली दो पहिये की गाड़ी में मनो उनकी दुनियां सिमटी हो.यह उनके लिए स्टाइल और फैशन स्टेटमेंट बन गया है.लेटेस्ट ट्रेंड के कपड़ों के साथ लेटेस्ट मोडल की बाइक दीवाने है युवा.......




{i-next 2 अप्रैल 2010 को प्रकाशित }

बचपन को आज भी जरूरत है किताबों की......

अब बच्चे बदल गए है.उन्हें बुक्स में इन्ट्रेस्ट नहीं रहा.वे कम्प्यूटर गेम्स और मूवीज के साथ बचपन गुजार रहे है.जरा सोचिये,ये कितना सही है?
कहाँ गए वो दिन,जब स्कूलों में छुट्टियाँ होते ही कॉमिक्स की दुकानों पर भीड़ लगने लगती थी.चंदामामा,नंदन,और पंचतंत्र,की कहानियों को पढ़कर बच्चे सोसाइटी के बारे में सीखते थे,लेकिन अब तो पूरा माहौल ही बदल गया है.एक समय था जब देवकी नंदन खत्री की चंद्रकांता को पढने के लिए लोगो ने हिंदी सीखनी कर दी थी.अब तो बच्चो की पढने की आदत छूट गयी है.कोर्स के अलावा वह कुछ पढना नहीं चाहते है.कोमिक्स की लाइब्रेरी अब दिखाई नहीं देती.अब तो अखबार पढ़ने वालो का भी टेस्ट बदल गया है.सुबह चाय की चुस्कियों के साथ एक हाथ में अखबार होता है,तो दूसरे में टी.वी.का रिमोट .इसके लिए पेरेंट्स भी दोषी है.अब दादा-दादी की कहानी सुनने को नहीं मिलती है.दुःख की बात यह है कि बच्चो को भी इसमें इन्ट्रेस्ट नही रह गया है.यह आदत अगर बचपन से पड़ जाती है तो फ्यूचर में इसका बुरा असर पड़ेगा .कितने बच्चे आज ऐसे है जो कि रामचरित मानस का पाठ कर पाते होगें.यह हमारे कल्चर की नीव है.नीव ही कमजोर पड़ गयी तो पूरे भविष्य की रूपरेखा बिगड़ जाएगी।

{i-next 30 march 2010 में प्रकाशित }