बचपन को आज भी जरूरत है किताबों की......

अब बच्चे बदल गए है.उन्हें बुक्स में इन्ट्रेस्ट नहीं रहा.वे कम्प्यूटर गेम्स और मूवीज के साथ बचपन गुजार रहे है.जरा सोचिये,ये कितना सही है?
कहाँ गए वो दिन,जब स्कूलों में छुट्टियाँ होते ही कॉमिक्स की दुकानों पर भीड़ लगने लगती थी.चंदामामा,नंदन,और पंचतंत्र,की कहानियों को पढ़कर बच्चे सोसाइटी के बारे में सीखते थे,लेकिन अब तो पूरा माहौल ही बदल गया है.एक समय था जब देवकी नंदन खत्री की चंद्रकांता को पढने के लिए लोगो ने हिंदी सीखनी कर दी थी.अब तो बच्चो की पढने की आदत छूट गयी है.कोर्स के अलावा वह कुछ पढना नहीं चाहते है.कोमिक्स की लाइब्रेरी अब दिखाई नहीं देती.अब तो अखबार पढ़ने वालो का भी टेस्ट बदल गया है.सुबह चाय की चुस्कियों के साथ एक हाथ में अखबार होता है,तो दूसरे में टी.वी.का रिमोट .इसके लिए पेरेंट्स भी दोषी है.अब दादा-दादी की कहानी सुनने को नहीं मिलती है.दुःख की बात यह है कि बच्चो को भी इसमें इन्ट्रेस्ट नही रह गया है.यह आदत अगर बचपन से पड़ जाती है तो फ्यूचर में इसका बुरा असर पड़ेगा .कितने बच्चे आज ऐसे है जो कि रामचरित मानस का पाठ कर पाते होगें.यह हमारे कल्चर की नीव है.नीव ही कमजोर पड़ गयी तो पूरे भविष्य की रूपरेखा बिगड़ जाएगी।

{i-next 30 march 2010 में प्रकाशित }


4 comments:

nilesh mathur said...

सच कहा आपने, सचमुच बहुत दुखद है!

Unknown said...

नमस्ते,

आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।

Riku Sirvya said...

अच्‍छा लगा पर इन सब के लिए हम स्‍वयं जिम्‍मेदार है हम इस आपाधापी के युग में आधुनिकता से अपने आप को जोड़ने के लिए किसी का भी भविष्‍य दाव पर लगा सकते है हम बच्‍चों को आधुनिक बनाने के बजाय हम उन्‍हें भोंदू बना रहे है

Udan Tashtari said...

विचारणीय पोस्ट!

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