कह चुके हो तो कुछ करिए भी जनाब....


कहना,कहते और कहते ही रहना.ये हमारी,आपकी और समाज की बहुत पुरानी अदा है.क्या कुछ करने का भी मन बनाया है......? हाल ही मेरे एक दोस्त सिंगापुर से लौटे है.वे वहां की तारीफों के पुल बाँध रहे थे.वह बताने लगे की वहां की सड़कों पर गन्दगी का नामोनिशान नहीं मिलता,सभी वहां के रूल्स फ़ॉलो करते है.हम दूसरे देश की व्यवस्था का पालन कर सकते है,अपनी व्यवस्था का नहीं.भारतीय धरती पर कदम रखते ही हम सिगरेट के टुकड़े जहाँ-तहां फेकने लगते है.कागज के पर्चे उछालते है.यदि हम पराये देश में प्रशंसनीय नागरिक हो सकते है तो भारत में क्यों नहीं.जो गन्दगी के लिए जिम्मेदार है,वही लोग प्रशासन को दोष देते है.हम वोट डालते है और अपनी सारी जिम्मेदारी वही उलट आते है.हम सोचते है कि हमारा हर काम सरकार करेगी.हम फर्श पर पड़ा हुआ रद्दी कागज़ उठाकर कूड़ेदान में डालने की जहमत तक नहीं उठाते.रेलवे हमारे लिए साफ सुथरे बाथरूम देती है और हम उन्हें इस्तेमाल करना भी नहीं सीख पाए.हम ड्राइंगरूम में बैठ कर दहेज़ के खिलाफ आवाज उठाते है और अपने घर में इसका उल्टा करते है.कहते है कि व्यवस्था ही खराब है.हर कोई भारतीय व्यवस्था को कोसने को तैयार है,लेकिन कोई इनीशिएटीव लेने को तैयार नहीं है।



{ i-next 17 मई 2010 में प्रकाशित }


1 comments:

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi said...

इनीशिएटीव maane !
thanks.
aap achchha likhte hain.

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